ग्वालियर । लोकनृत्य भारतीय संस्कृति की ऐसी कला है, जिससे लोग अछूते नहीं हैं। सोमवार को मेला रंगमंच पर हरीबाबा ने राजस्थानी लोकनृत्य का ऐसा जादू बिखेरा, जिसे देख दर्शक हतप्रभ रह गए।
राजस्थानी लोकनृत्यों की श्रृंखला शुरू होने से पहले मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष संचालक व सांस्कृतिक कार्यक्रम संयोजक नवीन परांडे, संचालकगण मेहबूब चेनवाले व सुधीर मंडेलिया, हरीबाबा, अमित चितवन ने मां सरस्वती की अर्चना कर दीप प्रज्वलित किया।
रसरंग लोककला मंडल कोटा के संचालक 62 वर्षीय हरीबाबा 45 वर्ष से देशभर में आयोजित प्रमुख कार्यक्रमों में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। ग्वालियर मेला में दूसरी बार आए हरीबाबा को भवई लोकनृत्य कला में महारत हासिल है। सोमवार को उन्होंने मेला रंगमंच पर अपनी टीम के सदस्यों हरिहर बाबा, शांतिलाल, नंदबिहारी, रानी, चिंकी, मुनमुन, नीतू व मोनिका के साथ राजस्थानी लोकनृत्यों की मनोहारी प्रस्तुति देकर दर्शकों का दिल जीत लिया।
*भजन से की शुरुआत*
हरीबाबा ने लोकनृत्यों की प्रस्तुति से पूर्व *एक मीरा, एक राधा, दोनों ने श्याम को चाहा....* भजन गाया तो दर्शक भावविभोर हो गए। इसके बाद उन्होंने राजस्थानी लोकनृत्यों की प्रस्तुति दी। इनमें किशनगढ़ का चैरी नृत्य पेश किया, जिसमें सिर पर दीपक जलाकर नृत्य किया।
रंगीलो राजस्थान पर झूमे दर्शक
हरीबाबा ने दूसरा आकर्षक लोकनृत्य *रंगीलो राजस्थान* पेश किया। इसमें सिर पर 51 मटके रखकर नृत्य किया तो दर्शक हतप्रभ रह गए, क्योंकि इसमें शारीरिक संतुलन का अद्भुत समावेश देखने को मिला। यह नृत्य *जलभरियो हिलोरा ले तनिया रेशम की... लोकगीत पर पेश किया गया।
*विभिन्न कलाओं का प्रदर्शन किया*
हरीबाबा ने लोकनृत्यों की इस श्रृंखला में कालबेलिया, घूमर, मोर नृत्य, भवई लोकनृत्यों की दिल छूने वाली प्रस्तुतियां देकर सभी का मन मोह लिया। उन्होंने *दल बादली पाणी सैया कुन्तु भरे...केशरिया बलम पधारो म्हारे देश... आदि की प्रस्तुति भी दीं। देर रात तक चले इस कार्यक्रम में दर्शक पूरी तन्मयता से डटे रहे। मंच संचालन प्रशांत चौहान ने किया।