भोपाल गैस त्रासदी को आज 35 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन आज तक भोपाल के लोग इस सदमे से बाहर नहीं आ पाए हैं ना ही अभी तक गैस पीडि़तों के हालात में कोई सुधार हुआ है। अब तक कितनी सरकारें आई और गईं, लेकिन भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों के साथ इंसाफ नहीं कर सकीं। आज भी उन्हें मिला है तो सिर्फ अधूरा न्याय। गैसकांड के पीडि़त आज भी सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं। 

विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदियों में शामिल भोपाल गैस कांड के 35 साल गुजर जाने के बाद भी पीडि़तों को इलाज और न्याय के लिए जूझना पड़ रहा है। गैस कांड पीडि़तों के लिए बनाए गए। अस्पतालों में मनोरोगी चिकित्सकों की कमी, नेफ्रोलॉजी एवं पल्मोनरी मेडिसिन जैसे विभिन्न विभागों के बंद हो जाने एवं स्वास्थ्य शोध न कराए जाने के कारण इन लोगों को अपने इलाज के लिए जूझना पड़ रहा है।


इस त्रासदी के पीडि़तों के लिए लंबे समय से काम कर रहे 'भोपाल गैस पीडि़त महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने बताया, 'केंद्र द्वारा संचालित भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर की हालत से ही गैस पीडि़तों की सेहत को लेकर सरकारी लापरवाही का जायजा लिया जा सकता है। पिछले कई सालों से इस अस्पताल में नेफ्रोलॉजी, पल्मोनरी मेडिसीन, सर्जिकल ग्रैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और ग्रैस्ट्रो मेडिसिन के विभाग बंद पड़े हैं।


7 साल में एक भी शोध नहीं


उन्होंने कहा,'पिछले सात सालों में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य शोध विभाग द्वारा संचालित इस अस्पताल में एक भी शोध नहीं हुआ है। दूसरी तरफ आईसीएमआर के भोपाल स्थित केंद्र की 16 नई शोध परियोजनाओं में से मात्र तीन का ही गैस कांड से कोई संबध है।


 इसी बीच, इन पीडि़तों के लिए काम करे रहे एक अन्य संगठन 'भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड ऐक्शन की सदस्य रचना ढींगरा ने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार की भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग द्वारा संचालित 6 अस्पतालों में हर रोज 4000 से अधिक मरीज इलाज कराने आते हैं। इनमें से पांच अस्पतालों में पिछले 19 सालों से एक भी मानसिक रोग चिकित्सक नहीं रहा। ढींगरा ने इस गैस कांड के पीडि़तों के इलाज के साथ-साथ आर्थिक एवं सामाजिक पुनर्वास में केंद्र तथा मध्यप्रदेश की सरकारों पर लापरवाही करने का आरोप लगाया। 


आज भी अधूरा है राहत और पुनर्वास


दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकले कम से कम 30 टन जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली। तमाम परिवार आज भी इस घटना का दंश झेल रहे हैं।


भोपाल गैस त्रासदी को आज 35 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन आज तक भोपाल के लोग इस सदमे से बाहर नहीं आ पाए हैं ना ही अभी तक गैस पीडि़तों के हालात में कोई सुधार हुआ है। अब तक कितनी सरकारें आई और गईं, लेकिन भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों के साथ इंसाफ नहीं कर सकीं। आज भी उन्हें मिला है तो सिर्फ अधूरा न्याय। गैसकांड के पीडि़त आज भी सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं। 


अस्पताल खुद ही बीमार


अब तो पीडि़तों को इलाज के लिए बने अस्पताल खुद ही बीमार हो चुके हैं। बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक सभी सरकारों ने एक-दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों के आंसू पोंछने के बड़े-बड़े दावे किए हैं। राहत कार्य, मुआवजा और बेहतर इलाज जैसे जुमलों से गैसकांड के पीडि़तों को लुभाने की कोशिश भी खूब हुई, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है रही है। 


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